ऐसा भी क्या कर दिया तुने
जो डर रहा है खुद से ही।
तेरे हक़ के लिए भी तु
कुछ कर नहीं पा रहा है।
अपनों को जोड़ने का ही तो
तुने गुनाह किया है।
रिश्तों को बचाने का ही तो
दुस्साहस किया है।
मगर, अब और कितना झुकेगा तु?
अब और कितना सहेगा तु?
माना, रिश्ते ज़रूरी हैं,
लिहाज़ ज़रूरी है।
मगर क्या
ये रिश्ते, ये लिहाज़
तेरे स्वाभिमान से,
तेरे आत्मसम्मान से भी ज्यादा ज़रूरी हैं?
नहीं!
सबसे पहले है जीवन अपना,
सबसे पहले है “आत्मसम्मान” अपना।
किसी को भी हक़ नहीं,
कि वो तुझसे तेरा हक़ छीन ले।
ज़िंदा है या मर गया,
ये पूछ खुद से।
अपनों से ही हार बैठा है क्यों,
ये पूछ खुद से।
क्यों झुक रहा है,
क्यों सह रहा है,
ये पूछ खुद से।
जब निभा ही रहा है
अपनी ज़िम्मेदारियाँ सारी,
तो फिर किस बात का डर है तुझको,
ये पूछ खुद से।
तो किस बात की चिंता है तुझको,
ये पूछ खुद से।
छोड़ दे उन अपनों को,
जो तुझसे दुश्मनों सा व्यवहार करें।
बात-बात पर तुझको
अपमानित करें।
तेरी हर बात, हर हरकत पर
गाली-गलौच करें,
और सबके सामने तुझे
जलील करें, दुर्व्यवहार करें।
क्यों तु ये सब अत्याचार सहे?
घुट-घुट कर क्यों
जीवन बर्बाद करे?
ये पूछ खुद से।
अब जाग खुद से, और लड़ खुद से।
गलत का सामना कर,
असभ्य का विरोध कर,
अधिकार का आरम्भ कर,
जीवन को अपने, जीवित कर।
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“मैंने अपनी वेबसाइट ok-poetry.com पर अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की है। ‘खुद से सवाल’ कविता आत्मसम्मान और हक की आवाज़ है, जो हमें हमारे अंदर की ताकत को पहचानने और रिश्तों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। यहां मैं अपनी सोच और भावनाओं को शब्दों में ढालता हूं, ताकि पाठक अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकें। मेरी वेबसाइट पर और भी कविताएं पढ़ने के लिए आप जुड़ सकते हैं और अपना समर्थन दे सकते हैं।”
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