“खुद से सवाल”| “आत्मसम्मान की पुकार” |Aatmsamman ki Pukar “Best हिंदी कविता 2024” | Self-Respect-Poetry

ऐसा भी क्या कर दिया तुने

जो डर रहा है खुद से ही।
तेरे हक़ के लिए भी तु
कुछ कर नहीं पा रहा है।

अपनों को जोड़ने का ही तो
तुने गुनाह किया है।
रिश्तों को बचाने का ही तो
दुस्साहस किया है।

मगर, अब और कितना झुकेगा तु?
अब और कितना सहेगा तु?
माना, रिश्ते ज़रूरी हैं,
लिहाज़ ज़रूरी है।

मगर क्या
ये रिश्ते, ये लिहाज़
तेरे स्वाभिमान से,
तेरे आत्मसम्मान से भी ज्यादा ज़रूरी हैं?

नहीं!
सबसे पहले है जीवन अपना,
सबसे पहले है “आत्मसम्मान” अपना।

किसी को भी हक़ नहीं,
कि वो तुझसे तेरा हक़ छीन ले।

ज़िंदा है या मर गया,
ये पूछ खुद से।
अपनों से ही हार बैठा है क्यों,
ये पूछ खुद से।

क्यों झुक रहा है,
क्यों सह रहा है,
ये पूछ खुद से।

जब निभा ही रहा है
अपनी ज़िम्मेदारियाँ सारी,
तो फिर किस बात का डर है तुझको,
ये पूछ खुद से।

तो किस बात की चिंता है तुझको,
ये पूछ खुद से।

छोड़ दे उन अपनों को,
जो तुझसे दुश्मनों सा व्यवहार करें।
बात-बात पर तुझको
अपमानित करें।

तेरी हर बात, हर हरकत पर
गाली-गलौच करें,
और सबके सामने तुझे
जलील करें, दुर्व्यवहार करें।

क्यों तु ये सब अत्याचार सहे?
घुट-घुट कर क्यों
जीवन बर्बाद करे?

ये पूछ खुद से।
अब जाग खुद से, और लड़ खुद से।
गलत का सामना कर,
असभ्य का विरोध कर,
अधिकार का आरम्भ कर,
जीवन को अपने, जीवित कर।

प्रिय पाठकों,
इस कविता “खुद से सवाल” का जन्म एक ऐसी भावना से हुआ है, जो शायद हम सभी ने कभी न कभी महसूस की होगी। हम सब अपने जीवन में रिश्तों और आत्मसम्मान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं। कई बार हमें लगता है कि अपने करीबियों को खुश रखना ही हमारी जिम्मेदारी है, और इसके लिए हम अपने हक, आत्मसम्मान और अपने अंदर की आवाज को दबा देते हैं। इस कविता में मैंने उन्हीं जज़्बातों को शब्दों में उतारने की कोशिश की है।
इस कविता में एक इंसान की भावनाओं को दर्शाया गया है, जो अपने आत्मसम्मान और दूसरों की अपेक्षाओं के बीच उलझा हुआ है। वो सवाल करता है कि क्या हमेशा दूसरों के लिए झुकना या उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना जरूरी है, जब उसके खुद के आत्मसम्मान और खुशियों की कुर्बानी दी जा रही हो। कविता का मकसद यह सवाल उठाना है कि क्या रिश्तों में सम्मान और अपनेपन का कोई मोल नहीं होना चाहिए? क्या हमें दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ अपने आत्मसम्मान को भी बनाए रखना नहीं आना चाहिए?
कई बार ऐसा होता है कि हमारे करीबी ही हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाते हैं। ऐसे में हम खुद को अकेला, बेबस और कमजोर महसूस करने लगते हैं। यही वो वक्त होता है जब हमें अपने आप से ये सवाल करना चाहिए कि क्या वाकई हमारी खुशी और हमारे आत्मसम्मान का कोई मोल नहीं है? यह कविता उसी आत्मसंवाद की प्रेरणा है। इसमें एक इंसान खुद से बात करता है, खुद को सवाल करता है और खुद ही जवाब भी खोजता है।
मेरे इस कविता को लिखने का कारण
ये है कि मैंने खुद भी कई बार ऐसी स्थितियों का सामना किया है, जहां अपनों से रिश्ते बनाए रखने के चक्कर में मुझे अपने आत्मसम्मान पर समझौता करना पड़ा। पर धीरे-धीरे मैंने ये समझा कि सच्चे रिश्ते वही होते हैं जो हमें नीचा नहीं दिखाते बल्कि हमारा सम्मान करते हैं। आत्मसम्मान हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है, और इसे बचाए रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी है। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, हमें खुद को कभी कमजोर महसूस नहीं करना चाहिए। यही बात इस कविता के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की है।
इस कविता के माध्यम से मैं यही कहना चाहता हूं कि हमें खुद से, अपने दिल से कुछ महत्वपूर्ण सवाल करने चाहिए। अगर हमें अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए आत्मसम्मान खोना पड़े, तो शायद हमें सोचने की जरूरत है। यह कविता हर उस व्यक्ति के लिए है, जो अपने हक और आत्मसम्मान के लिए खड़ा होना चाहता है।
आखिर में, मैं आप सबसे ये कहना चाहता हूं कि कभी किसी भी परिस्थिति में अपने आत्मसम्मान से समझौता न करें। अपने भीतर की ताकत को पहचानें, गलत का विरोध करें और अपने अधिकारों की रक्षा करें। उम्मीद है, इस कविता को पढ़ते हुए आपको वो ताकत महसूस होगी जो आपके भीतर हमेशा से है, बस उसे पहचानने की देर है।

 

इस कविता को पढ़ने के बाद यदि आपके मन में कोई विचार, भावनाएं, या अपना कोई अनुभव हो, तो कृपया उन्हें साझा करें। क्या आपने भी कभी आत्मसम्मान और रिश्तों के बीच इस तरह का संघर्ष महसूस किया है? अगर हां, तो आपके विचारों से और भी पाठक प्रेरणा ले सकते हैं।यदि यह कविता आपको पसंद आई और इसका संदेश आपके दिल को छू गया, तो कृपया इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें। एक छोटी-सी बात भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है, और शायद इस कविता के माध्यम से हम साथ मिलकर आत्मसम्मान और स्वाभिमान की बात को आगे बढ़ा सकें।इसके अलावा, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कमेंट्स में बताएं कि यह कविता आपको किस तरह महसूस कराती है। आपकी राय जानने से मुझे भी समझने में मदद मिलेगी कि मेरी कविता पाठकों पर क्या प्रभाव छोड़ रही है।

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“मैंने अपनी वेबसाइट ok-poetry.com पर अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की है। ‘खुद से सवाल’ कविता आत्मसम्मान और हक की आवाज़ है, जो हमें हमारे अंदर की ताकत को पहचानने और रिश्तों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। यहां मैं अपनी सोच और भावनाओं को शब्दों में ढालता हूं, ताकि पाठक अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकें। मेरी वेबसाइट पर और भी कविताएं पढ़ने के लिए आप जुड़ सकते हैं और अपना समर्थन दे सकते हैं।”

धन्यवाद!

जुकने से कोई गुलाम नहीं होता है जो “सर उठाने” के लिए जुकता है वही “महान” होता है |

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