कुछ करना चाहता हूँ
“पहचान” बनाना चाहता हूँ में
अरे बैठा ही हूँ में
क्यों न कुछ करू में
उम्मीदों को मारने से क्या होगा
बैठा ही था
बैठा ही रहूँगा में
मगर उम्मीदों के लिये
कुछ करूंगा तो
और इन उम्मीदों को
मरने नहीं दूंगा तो
कुछ कर सकता हूँ में
अपनी पहचान बना सकता हूँ में
बस, इसीलिये में आया हूँ यहाँ
‘आज’ सबसे मुकाबला करने |
कविता के बारे में “मेरी बात ”
मुकाबला: सपनों को हकीकत में बदलने की कला
हर व्यक्ति के भीतर कहीं न कहीं एक ख्वाब छुपा होता है, एक पहचान बनाने की तड़प होती है। लेकिन अक्सर हम सिर्फ इंतजार करते रहते हैं, बगैर कुछ किए। यही सोच कवि की रचना “मुकाबला” में खूबसूरती से उभर कर आती है। ये
कविता हर उस व्यक्ति की कहानी है जो अपने भीतर की उम्मीदों को मरने नहीं देना चाहता और जिंदगी में कुछ कर दिखाने की चाह रखता है।
कविता की पहली कुछ पंक्तियां एक गहरे द्वंद्व को दर्शाती हैं—”कुछ करना चाहता हूँ”, “पहचान बनाना चाहता हूँ”—यह बताता है कि कवि के मन में एक इच्छा है, लेकिन वह अभी तक किसी ठोस कदम की ओर नहीं बढ़ा है। यह मनुष्य की
आम स्थिति है, जहां हम सोचते तो बहुत कुछ हैं, परंतु उन्हें हकीकत में बदलने के लिए आवश्यक मेहनत या हौसला नहीं जुटा पाते।
कवि कहता है, “उम्मीदों को मारने से क्या होगा, बैठा ही था, बैठा ही रहूँगा में”, यहां वह यह जताता है कि अगर हमने अपनी उम्मीदों का गला घोंट दिया, तो हमारा जीवन यथावत रहेगा, बिना किसी बदलाव के। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है,
क्योंकि बहुत से लोग इस स्थिति में फंस जाते हैं, अपनी अपेक्षाओं और चाहतों को दबा देते हैं और जीवन में ठहराव महसूस करते हैं।
मगर, कविता का असली संदेश तब आता है जब कवि खुद से यह कहता है, “मगर उम्मीदों के लिये कुछ करूंगा तो, और इन उम्मीदों को मरने नहीं दूंगा तो, कुछ कर सकता हूँ में, अपनी पहचान बना सकता हूँ में।” यही जीवन का असली सार
है। सपने तभी पूरे होते हैं जब हम उनके लिए प्रयास करना शुरू करते हैं। उम्मीदों को जीवित रखना और उनके लिए संघर्ष करना ही हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाता है।
कविता का अंतिम हिस्सा, “बस, इसीलिये में आया हूँ यहाँ, ‘आज’ सबसे मुकाबला करने” यह स्पष्ट करता है कि अब कवि ने निर्णय कर लिया है—वह इंतजार नहीं करेगा, बल्कि आज से ही वह अपनी पहचान बनाने के लिए मुकाबला करेगा।
यह पंक्तियां हर उस व्यक्ति को प्रेरणा देती हैं, जो कुछ कर दिखाने की चाह रखता है, परंतु अभी तक पहला कदम उठाने से घबराता है।
निष्कर्ष:
मुकाबला सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि एक चुनौती है, जो हर व्यक्ति को यह सिखाती है कि अगर आप अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहते हैं, तो आपको खुद से मुकाबला करना होगा। उम्मीदों को जिन्दा रखना, कड़ी मेहनत करना
और खुद पर विश्वास करना ही सफलता की कुंजी है। कविता का यह संदेश हर उस व्यक्ति को समर्पित है, जो जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना देखता है और उसके लिए लड़ने को तैयार है।
पाठकों से अनुरोध:
प्रिय पाठकों,
मेरी यह कविता “मुकाबला” उन सभी के लिए है जो अपनी पहचान बनाने का सपना देख रहे हैं, लेकिन शायद अब तक अपने सपनों की ओर पहला कदम उठाने से झिझकते रहे हैं। यह कविता आपको यह एहसास दिलाने के लिए है कि हमारी उम्मीदें और सपने तभी साकार होते हैं जब हम उनके लिए संघर्ष करने को तैयार होते हैं।
मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस कविता को पढ़ने के बाद अपनी ज़िन्दगी में भी वही हिम्मत और जज़्बा ढूंढें, जो इसे प्रेरित करता है—
अपनी उम्मीदों को कभी मरने न दें। खुद से मुकाबला करें, अपने अंदर की आवाज़ को सुनें, और आज ही उस दिशा में कदम बढ़ाएं, जो आपको आपकी मंजिल तक ले जाएगी।
आशा है कि यह कविता आपको प्रेरित करेगी और आपके भीतर के विश्वास को और मजबूत बनाएगी।
धन्यवाद,
[B शिवाय – OkPoetry.com]