“विश्वास – मैं ज़रूर चमकूंगा” ! Vishwash आत्मविकास की कविता”
क़दम तो बढ़ते हैं, मगर राह नज़र नहीं आती,
दिल में चाहतें तो बहुत हैं,
मगर आशा नज़र नहीं आती।
हौसले बुलंद हैं तो क्या हुआ,
हिम्मत नहीं आती,
ख़ुद पर भरोसा तो बहुत है,
मगर किस्मत साथ नहीं देती।
बस यही इंतज़ार है मेरा —
कि मिलेगा मुझको भी ऐसा साथी,
जो बनेगा मेरा ‘आदर्श’,
जो दिखा देगा मुझे सही रास्ता।
फिर तो मेरी भी ‘पहचान’ होगी,
ठीक वैसे ही जैसे अंधेरे में एक दीपक
चमकता है ‘शान’ से।
ज्योति जलती है दीपक के सहारे,
दीप बिना ज्योति सुनी, और
ज्योति बिना उजाला कैसा?
है विश्वास मुझे भी —
कि मैं भी किसी ज्योति से कम नहीं,
मगर ‘दीपक’ की कमी के कारण
मैं किसके सहारे चमकूं?
मगर फिर भी मेरा “विश्वास” कहता है —
कि मैं ज़रूर चमकूंगा,
मैं ज़रूर चमकूंगा।
मिलेगा मुझे भी कोई दीपक, कोई आदर्श,
जो मेरा मार्गदर्शन करेगा,
और मुझे सूर्य-सा रोशन करेगा।
देखना ऐ दुनिया वालों —
मैं ज़रूर चमकूंगा।
है “विश्वास”।